अफगानिस्तान  में कैसे हुआ तालिबान का उदय, बढ़ेंगी भारत की दिक्कतें

बीते दिनों अफगानिस्तान के 19 प्रांतों की राजधानियों को तालिबान ने अपने कब्जे में कर लिया है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के देश छोड़ने के बाद पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका है। लेकिन सवाल ये है की तालिबान है कौन? और किस तरह इसका उदय हुआ?

‘तालिबान’ को दुनिया के आतंकी संगठनों में गिना जाता है, क्योंकि तालिबान का संबंध आतंकी संगठनों से है।


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‘तालिबान’ का उदय

तालिबान’ पश्तो भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है छात्र। इसका संबंध दुनिया के कई आतंकवादी संगठनों से है। ऐसा कहा जाता है कि तालिबान का जन्म 90 के दशक में पाकिस्तान में हुआ, उस दौरान अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेना वापस लौट रही थी। अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेना के वापस लौटने के बाद कई गुटो में संघर्ष शुरू हुआ। इस दौरान तालिबान का उदय हुआ अफगानिस्तान में।

इन गुटों से छुटकारा पाने के लिए अफगान लोगों ने तालिबान से मदद लेना शुरू कर दिया। हालांकि बाद में तालिबान के सख्त नियमों से परेशान होकर अफगान लोगों ने तालिबान का विरोध शुरू कर दिया। लेकिन इस समय तक तालिबान इतना मजबूत हो गया था कि उन पर इस विरोध का कोई असर नही हुआ।

कहा जाता है कि तालिबान के इतना मजबूत होने में अमेरिका का भी काफी सहयोग रहा, हालांकि आज वो भी तालिबान के खिलाफ है। ऐसा माना जाता है कि अफगानिस्तान से सोवियत संघ के प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका तालिबान को समर्थन देता था। लेकिन 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका तालिबान पर कारवाई करने लगा। बता दे कि 90 के दशक में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद तालिबान ने देश में शरिया कानून को लागू किया जिससे नागरिकों पर कई पाबंदियां लगा दी गई। यही वजह है कि आज तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद कई अफगानी नागरिक दूसरे देशों में शरण लेना चाहते है।

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने से बढ़ सकती है भारत की मुश्किलें।

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने का मतलब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का अपर हैंड होगा। पिछले 20 सालों में भारत ने जो भी विकास अफगानिस्तान में किए है वो धूमिल पड़ सकते है।

भारत और अफगानिस्तान ट्रेड पर असर हो सकता है क्योंकि तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान का व्यापार ग्वादर और कराची पोर्ट से होगा और इस कारण भारत का ईरान के चाबहार पोर्ट से होने वाला निवेश नहीं हो पाएगा।

अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाए गए जरांज-डेलाराम हाइवे और सलमा डैम पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, और ऐसे कई बड़े प्रोजेक्ट जो अंडर कंस्ट्रक्शन उन पर भी खतरा है।

तालिबान की सत्ता आने से इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल सकता है जिसका असर भारत पर भी हो सकता है।

ऐसे में क्या विकल्प है भारत के पास?

भारत के लिए कुछ विकल्प है लेकिन ये आसन नही है, पहला तो ये कि भारत काबुल में लोकतांत्रिक सरकार के लिए तालिबान के साथ संपर्क में रहे और मानवीय सहायता दे।

एक और ऑप्शन ये हो सकता है की भारत ‘वेट एंड वॉच' की नीति अपनाए और परिस्तिथियो के अनुकूल अपनी पॉलिसी बनाए।